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आर्यिका श्री 105 विज्ञानमति माता जी

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नाम : आर्यिका श्री 105 विज्ञानमति माता जी
पूर्व नाम : ब्र. लीला
पिता श्री : श्री बालूलाल जी हाथी ( आचार्य वर्धमान सागर जी द्वारा दीक्षित समाधिस्थ मुनि श्री यशसागर जी महाराज )
माता श्री : श्रीमती कमलाजी हाथी
जन्म तिथि : आश्विन शुक्ला पंचमी सन् 23 अक्टूबर 1963
जन्म स्थान : भीण्डर ( जिला-उदयपुर ) राजस्थान
विवाह : 18 वर्ष की उम्र में, भीण्डर ( जिला - उदयपुर ) राजस्थान सन् 1981
लौकिक शिक्षा : हाईस्कूल
गृह त्याग : परिणय के १८ माह बाद
प्रतिमा धारण : 5 प्रतिमा - अलोध ( राजस्थान ) १ प्रतिमा कुचामन ( राजस्थान )
आर्यिका दीक्षा : माघ शुदी बारस 2 फरवरी 1985
दीक्षा स्थली : कूकनवाली ( कुचामन सिटी राजस्थान )
दीक्षा गुरु : परम पूज्य आचार्यकल्प समाधिस्थ श्री विवेकसागरजी मुनिराज
रूचियाँ : स्वाध्याय, तप-त्याग, चिन्तन-मनन, लेखन
विशिष्ठता : मधुर, सरल, गंभीर पौराणिक शैली में प्रवचन
चेतन सृजन : *सर्वप्रथम २००१ शाश्वत सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर में ५ दीक्षाएं आर्यिका वृषभमति जी, आर्यिका आदित्यमति जी, आर्यिका पवित्रमति जी, आर्यिका गरिमामति जी, आर्यिका संभवमति जी। *द्वितीय बार २००९ अशोक नगर ( म.प्र ) १ दीक्षा आर्यिका वरदमति जी। *तृतीय बार २०११ नारेली ( राजस्थान ) ४ दीक्षाएं आर्यिका शरदमति जी, आर्यिका चरणमति जी, आर्यिका करणमति जी, आर्यिका शरणमति जी। *चतुर्थ बार २०१५ आरोन ( मध्यप्रदेश ) ४ दीक्षाएं आर्यिका सुवीरमति जी, आर्यिका सुयशमति जी, आर्यिका उदितमति जी, आर्यिका रजतमति जी
आजीवन त्याग / नियम :
अनगिनत गुणों में से कुछ मोती :-
  1. 1. आजीवन नमक, मीठा, तेल, दही, तली साम‌ग्रियों का त्याग।
  2. 2.  आर्यिका श्री का किसी भी परिस्थिति में आजीवन अष्टमी / चतुर्दशी के उपवास का नियम है।
  3. 3. चौके के बाहर की अन्न की सामग्रियों का त्याग है। 
  4. 4. आर्यिका प्रशांतमति माता जी को पाटे पर सोते देखा तब से घास, चिटाई ओढने एवं बिछाने का त्याग कर दिया। 
  5. 5. मुनि श्री विमल सागर जी महाराज के द्वारा गुरु चर्या पूछने पर उन्होंने बताया कि सूर्योदय पूर्व एवं सूर्यास्त पश्चात् वे विहार नहीं करते थे, तब से पूज्य आर्यिका श्री ने भी इस नियम का पालन करना प्रारंभ किया। 
  6. 6. गुरु परंपरानुसार ही चातुर्मास या किसी विशेष परिस्थिति को छोड़‌कर एक स्थान में 27 दिनों से ज्यादा नहीं रुकती है। 
  7. 7. किसी भी प्रकार की बड़ी या छोटी बीमारी होने के बावजूद भी किसी भी प्रकार की औषधि का सेवन नहीं करती। 
  8. 8. बड़े बड़े साहित्य की रचना बिना किसी नयी कॉपी, रजिस्टर, डायरी के करती है।
  9. 9. अहिंसा महाव्रत का सूक्ष्म परिपालन, स्थिर बिना ढक्कन का पेन ही प्रयोग में लाना।  
  10. 10. विधानों की रचना स्लेट, बत्ती पर ही करती हैं, उसे कोई कॉपी में लिखे इसका विकल्प भी नहीं रहता। 
  11. 11. समस्त संघो से साधर्मी वात्सल्य सहित समाचार का आदान प्रदान।   
  12. 12. १ २ ३ ४ घंटे निर्विकल्प साधना ना किसी को देखना, ना इशारा करना , सामने दिखने पर भी नही देखना , ना सुनना, ना कहना। 
सानिध्य एवं निर्देशन में समाधियाँ : आर्यिका विशालमति माताजी ( विजयनगर ), आर्यिका विद्युतमति माताजी जी ( नसीराबाद ), आर्यिका वृषभ मति माताजी ( सागर, तिलकगंज ), आर्यिका संभवमति माताजी जी ( महरौनी उ.प्र ), क्षु. लक्ष्यमति जी ( मालथौन ) , ब्र. कंचन दीदी ( बामौर )

अविरल, अनिकद्ध, अनियत, अविकल विहारी पूज्य आर्यिका श्री ने लगभग मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र , तमिलनाडु, बागड़,मारवाड़, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, झारखण्ड, के सभी अतिशय / सिद्ध/ तीर्थ क्षेत्रों के दर्शन कर लिए।

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मूलाचार झलकता जिनमें चर्या सोलह वानी है, आत्म तत्व का भेद जानती मेरी माँ विज्ञानी है, तजकर घर आडंबर सारे पायी दीक्षा प्यारी है, कूकनवाली विवेक गुरु की शिष्या पंचम न्यारी है।

aaryikavigyanmatiji.in

अधिक जानकारी के लिए आप लीला नामक जीवनी को पढ़ सकते है जो की इनके जीवन पर आधारित है....